संयम भाव मूलतः दुख का अनुभव होने पर ही आता है... धर्मेंद्र मुनि*

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संयम भाव मूलतः दुख का अनुभव होने पर ही आता है... धर्मेंद्र मुनि*

 *संयम भाव मूलतः दुख का अनुभव होने पर ही आता है... धर्मेंद्र मुनि*

*मेरा परिवार मुझे वीर योद्धा की तरह विदा कर रहा है ...मुमुक्षु ललित भंसाली*

(मनोज पुरोहीत)

 पेटलावद। पुण्य नष्ट करने या खर्च करने के लिए कोई साधन नहीं करना पड़ती है।कर्म खपाने के लिए पुरुषार्थ करना पड़ता है। संयम भाव मूलतः दुख का अनुभव होने पर ही आता है। आवश्यक नहीं है कि धन के वैभव के शरीर के आदि के कष्ट होने पर ही आये।  यह तो किसी भी संसारी गतिविधि से दुख अनुभव होने पर आ सकता है।ललित भाई के पास सब कुछ था पर इन्हे भी उसमे सुख अनुभव नहीं हुआ।उन्होंने पद्गलों का नहीं सिद्धों का सुख पाना  है।और वह संयम मार्ग से ही संभव है। यह बात उनके समझ में आ गई हे। संसारी व काया के चिंतन से। शरीर कर्म कि वजह से है यह समझ सच्चा वैराग्य लाती हे। संसार को पड़कर रखना पागलपन है स्वयं ही समझ में आने पर छोड़ देना समझदारी है। जो ललित भाई कर रहे हैं ।उक्त बात तत्वज्ञ  धर्मेंद्र मुनि जी ने 30 अप्रैल को प्रवर्तन श्री जिनेंद्र मुनि जी महाराज साहब से थांदला में दीक्षा ग्रहण करने वाले मुमुक्षु श्री ललित भाई भंसाली के सम्मान में आयोजित समारोह में कहे। पूज्य गिरीश मुनि ने कहा संयम से विश्वमित्रता का संबंध स्थापित होता है। मुक्ति के लिए जो प्रवृत्ति करता है वह सच्चा संयमी हे। शादीशुदा संयम लेकर क्या सात फेरों का उल्लंघन नहीं कर रहा है? इस विषय पर आचार्य श्री उमेश मुनि जी ने बहुत ही सारगर्भित उत्तर दिया था। कहा था मोह कषाय से की गई प्रतिज्ञा धर्म क्षेत्र मे तोड़ने योग्य है।


ललित भाई ने मोह कषाय को तोड़ा है। मुमुुक्षु ललीत भंसाली ने कहा एक फिट जमीन के लिए झगड़ जाने वाले। रूपयों के लिए अड जाने वाले ललित को समझ में आ गया है कि हम सीहं हे पर गीदड़ की खाल में है मै उसे उतार फेंक कर शिव मार्ग पर चलने जा रहा हूं। मैं पेटलावद में कई बार आया हूं तब  तो मेरी जयकारा यात्रा नहीं निकली नही सम्मान हुआ क्यों। क्योंकि मैं संयम लेकर साधुवेश को स्वीकार कर ने जारहा हु ये इसी कि बलिहारी है।गहरी नींद से सोए को जगाना सरल है पर जो नींद में होने का अभिनय कर रहा है उसे नहीं जगाया जा सकता है।  जैसे एक घूंट चाय पिने से पता चल जाता है कि ठंडी है या मीठी है। जैसे एक कोर से पता लग जाता है भोजन कैसा है। वैसे ही मुझे समझ में आया गया है यह रिश्ते यह वैभव कुछ समय के हैं फिर तू छुट्ट  जाएगें टूट जायेंगें हैं।इसी समझ ने मुझे बैरागी बना दिया है।

कर्म योद्धा बना दिया है। मेरा परिवार मुझे वीर योद्धा की तरह विदा कर रहा है।  ललित भाई के सम्मान में बिना किसी आडंबर के जय कारा यात्रा निकाली गई।स्थानक  भवन पर  श्री संघ महावीर समिति जैन सोशल ग्रुप डूंगर प्रांतीय चंदन श्राविका संगठन ने बहुमन किया। आयोजन में कार्यवाहक अध्यक्ष मणिलाल चाणोदिया उपाध्यक्ष महेंद्र कटकारी कोषाध्यक्ष विमल मोदी संघ संवाददाता जितेंद्र मेहता संतोष गुजराती महिला मंडल अध्यक्ष आशा भंडारी बहु मंडल अध्यक्ष संगीता मेहता नीरज जैन पूर्व अध्यक्ष अनोखी लाल मेहता नरेंद्र कटनी नरेंद्र मोदी चंदन श्राविका संगठन कि राष्ट्रीय अध्यक्ष संगीता मोदी खुशब कटकानी आदि कई श्रावक श्राविका उपस्थित थे। संचालन व अभिनंदन पत्र का वाचन राजेंद्र कटकारी ने किया।सुरेश सोंलकी परिवार कि और से नवकारसी रखी गई।

 



 

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