सेवानिवृत होने पर वरिष्ठ अध्यापक राकेश मग का हुआ नगर में बहुमान*ओर विदाई समारोह*

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सेवानिवृत होने पर वरिष्ठ अध्यापक राकेश मग का हुआ नगर में बहुमान*ओर विदाई समारोह*

 *सेवानिवृत होने पर वरिष्ठ अध्यापक राकेश मग का हुआ नगर में बहुमान*ओर विदाई समारोह*

*विदाई सम्मान समारोह के अवसर पर बग्गी में बैठा कर कराया नगर भ्रमण*

*पुष्प वर्षा कर जगह जगह हुआ सम्मान*

(मनोज पुरोहित)

पेटलावद|कहते है गुरु बिना ज्ञान अधूरा है गुरु के बिना कोई भी आगे नहीं बढ़ सकता, ऐसे ही हमारे नगर के शिक्षाविद, गणित के ज्ञाता,हसमुख,सरल,सहज और परम सम्माननीय गुरु *राकेश कुमार मग सर* के सेवानिवृत दिवस पर विद्यालय परिवार की ओर से व नगरवासियों द्वारा साल श्री फल, साफा पहनाकर सहर्ष मान सम्मान किया गया।


अपनी स्वच्छ छवि और कर्त्तव्य निष्ठा से विद्या का दान करते हुवे अपना कार्यकाल पूर्ण करने पर आदरणीय मग सर का बैंड बाजों के साथ नगर वासियों ने बग्गी में बैठाकर नगर भ्रमण कराया और इस यादगार पल के साक्षी बने।नगर भ्रमण के अवसर पर पुष्प वर्षा कर अभिनंदन किया गया । तथा विशेष सम्मान ब्राह्मण समाज, राठौड़ समाज,जैन समाज,माली समाज, सीरवी समाज,मिस्त्री समाज, व वैष्णव वैरागी समाज व विद्यालय परिवार ने सेवानिवृत होने वाले मग सर का सपरिवार सम्मान किया गया।


*मग सर के सेवानिवृत होने पर शिष्यों का कहना है*

सर हमे गणित विषय का अध्ययन कराते थे और इतना सरलता से समझाते थे सर द्वारा कराया गया अध्ययन बहुत सरल था। सर जैसे अध्यापक से पढ़ना बहुत अच्छा लगता था।


*भाजपा मंडल अध्यक्ष जितेन्द्र राठौड़* 

सर पढ़ाई के साथ साथ मजाक भी किया करते थे और बीच बीच में मजेदार चुटकुले भी सुनाते थे गणित विषय कठिन लगता था फिर भी सर के विषय में बैठना अच्छा लगता था।

*प्रदीप बोराना**किराना व्यापारी

हमारे परम आदरणीय मग सर के सेवानिवृत्ति का दिन था, पिछले तीन-चार दशकों से आदरणीय सर हमारे गांव में गणित जैसे जटिल विषय को बहुत ही सरलता से बिना किसी भेदभाव के हर विद्यार्थी को समान रूप से पढ़ाते आ रहे हैं,


*राजेश काॅसवा पूर्व सांसद प्रतिनिधि* 


 पूरी ईमानदारी से ज्ञान की वर्षा जो आपने मुझ पर और मेरे जैसे अनगिनत विद्यार्थियों पर की है उसके लिए गुरु दक्षिणा में हम जो भी दे वह कम ही होगा


*नारायण राठौड़*पान वाल

आपके दिए हुए ज्ञान  से कई छात्र प्रकाशित हुए। मैं उन कुछ भाग्यशाली विद्यार्थियों में से हूं जिसे आपका स्नेह और गलती करने पर डांट दोनों समय-समय पर मिलता रहा है‌।

*फकीरचंद माली  ग्राम पंचायत पंच*

सब धरती कागद करूं, लेखनी सब वनराय, सात समुद्र की मसि करूं, गुरू गुन लिखा ना जाए। इसका अर्थ क्या है? कबीरदास रचित इस दोहे का अर्थ यह है कि सारी धरती को कागज के रूप में प्रयोग करके, समस्त वन (जंगल) की लकडी की कलम बनाकर और सातोंं समुद्रो के जल की स्याही बनाकर भी गुरु के गुणो का वर्णन पूरा नहीं लिखा जा सकता है

*अभिषेक जोशी*

 



 

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