दहकते अंगारो पर चल उतारी मन्नत, 200 से अधिक मन्नतधारी निकले चूल से
आस्था और विश्वास की डोर के सहारे ग्रामीणों ने दहकते अंगारो (चूल) पर चलकर परंपरा का निवर्हन किया और मन्नत उतारी
,,,दिवेश उपाध्याय,, अशोक गुर्जर,,,
धुलेंडी पर मप्र के झाबुआ जिले के पेटलावद विकासखण्ड के ग्राम बावड़ी, करवड़, अनंतखेड़ी, टेमरिया आदि स्थानो पर यह पर्व पारंपरिक रूप से मनाया गया। ग्रामीण मन्नतधारियों ने दहकते अंगारो से भरे गड्डे के बीच नंगे पैर गुजरते हुए अपनी मन्नत पूरी की। साथ ही अपने आराध्य भगवान को शीश झुकाया। यह सिलसिला शाम तक जारी रहा। आस्था के इस अनूठे आयोजन को देखने के लिए न केवल स्थानीय बल्कि पड़ोसी रतलाम व धार जिलो से भी ग्रामीणों का जनसैलाब उमड़ा। पुलिस ने कार्यक्रम स्थल के आसपास सुरक्षा के कड़ें इंतजाम किए,,
*क्या है चूल परंपरा:*
करीब तीन-चार फूट लंबे तथा एक फीट गहरे गड्डे में दहकते हुए अंगारे रखे जाते है। माता के प्रकोप से बचने और अपनी मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु माता का स्मरण करते हुए जलती हुई आग में से निकलते है। अच्छी फसल एवं शांति व सद्भावना के लिए यह परंपरा वर्षो से निभाई जा रही है।
*इन्होनें निभाई परंपरा:*
ग्राम व आसपास के करीब 30 श्रद्धालुओं ने इस परंपरा को बखूबी निभाया। जिसमें कई श्रद्धालुओं ने धधकते अंगारो पर गुजरे और मन्नत उतारी। इस बीच करीब 40 किलो घी की आहुति चूल में दी गई। इस पौराणिक परंपरा को निभाने का क्रम दशकों से चला आ रहा है। हर साल इसका निर्वहन करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। चूल वाले स्थान में अंगारो के रूप लगाई जाने वाली लकडिय़ां और मन्नतधारी के आगे-आगे डाले जाने वाला घी गांव के अनेक घरों से श्रद्धानुरूप आता है।
,,करवड़ में हुआ अनूठा आयोजन,,
धुलेंडी पर यहां चूल मेला भराया। दोपहर 4 बजे से शिव मंदिर प्रांगण में मेले में भक्तो का आना शुरू हो गया। शाम साढ़े ५ बजे यहां चूल जलाई गई। लगभग एक घंटे तक मन्नतधारी एक के बाद धधकते अंगारो पर नंगे पैर गुजरे। इस दौरान लगभग 250 लोगो ने मन्नत पूरी की। जिसमें से करीब 50 महिलाएं थी। इस पर्व को देखने के लिए हजारों की संख्या में ग्रामीण पहुंचे। पूरे क्षैत्र में यह एकमात्र ऐसा स्थान है जहां हजारो की तादाद में चूल देखने के लिए ग्रामीणों का हूजूम उमड़ता है।