सुंदर ने राजेन्द्र सेठ ना पोता पोती नो आदिवासी रीते नकाली बनोली
जैन परिवार ने आदिवासी अंचल परम्परा से निकाला प्रोसेसन
आदिवासी ढोल मांदल के साथ नृतक दल रहा आकर्षण का केंद्र
,,दिवेश उपाध्याय अशोक गुर्जर,,,
झाबुआ आदिवासी अंचल होने के साथ इसकी खूबसूरती है यहाँ की परंपरा व पहनावा जो अक्सर होली के एक सप्ताह पूर्व भगोरिया पर्व पर देखने को मिलता है। इसका आकर्षण विश्व विख्यात है तभी उन दिनों अनेक विदेशी पर्यटक सैलानी इसका लुफ्त उठाते देखे जा सकते है। आदिवासियों का रहन सहन पहनावा आज भी भौतिकता से परे होकर प्राचीनकाल की याद दिला देता है।
इस परंपरा से प्रभावित होकर यहाँ के रहने वाले सुंदरलाल भंसाली के पुत्र भाजपा के वरिष्ठ नेता अनिल भंसाली के छोटे पुत्र व भाजपा युवा मोर्चा महामंत्री प्रांजल भंसाली के भाई निखिल भंसाली व राजेन्द्र रुनवाल के पुत्र पूर्व पार्षद अरविंद रुनवाल की पुत्री नवधा की बनोली आदिवासी पहनावे के साथ निकाली गई। बनोली में झाबुआ व निकट बड़वानी ज़िलें के नृतक दल प्रमुख आकर्षण का केंद्र रहे जो पूरे नगर में लाड़ा-लाड़ी की बग्गी के आगे नृत्य करते चले। बनोली में लाड़ा-लाड़ी बने निखिल और नवधा ने पारंपरिक परिधान के साथ चांदी के जेवर पहन बग्गी में ही नाचते दिखाई दिए।
बनोली में झाबुआ ज़िलें के तहसील व ब्लॉक के बड़े नेताओं के साथ ग्रामीणजन पारंपरिक ढोल मांदल लेकर शामिल हुए वही परिवारजन, रिश्तेदार व मित्रगण भी आदिवासी झुलड़ी आदि पहनावे के साथ शामिल होकर नाचते गाते खुर्राटी मारते नजर आए। यह पहला अवसर है जब किसी गैर आदिवासी (जैन) ने अंचल की परंपरा को अपनाते हुए शादी का प्रोसेसन आदिवासी बनोली के रूप में निकाला जो नगरजनो में प्रसंशा के साथ कौतूहल व चर्चा का विषय भी बना हुआ है।