*बचपन में मां , जवानी में संत और बुढ़ापे में परमात्मा का सहारा जिसे मिलता है वह अवस्था सार्थक हो जाती ... साध्वी श्री ज्योतिषमतिजी*
(मनोज पुरोहित)
पेटलावद।रिश्तो में मां के रिश्तों के आगे सब छोटे है , मां की ममता से बड़ा कोई नहीं है। मां की ममता के बिना दुनिया में कोई बड़ा नहीं हुआ है। बचपन में मां , जवानी में संत और बुढ़ापे में परमात्मा का सहारा जिसे मिलता है वह अवस्था सार्थक हो जाती है। जैसे आसमान का कोई अंत नहीं है वैसे मां ऐसी मंजिल है जिसका कोई अंत नहीं है। हमारे शरीर निर्माण में खून मांस मस्तिष्क मां के अवशेष है। हड्डी नाखून केश पिता के होते हैं। मां को आश्रम में छोड़कर तमाशा मत बनाना। न मां को तमाशा बनाना। मां का चेहरा रोज पढा करो चरणों में रोज झुका करो और मां तू कैसी है रोज पूछ लिया करो।
उक्त मर्मस्पर्शी बातें पर पर्व पर्युषण के तीसरे दिन साध्वी श्री ज्योतिषमति जी ने कही। आपने जैन की व्याख्या करते कहा कि जो न्याय प्रिय हो , जिसका अंतर मन प्रेम से भरा हो , आंतरिक सौंदर्य से भरपूर हो इसके साथ गहन अध्यात्मिक दर्शन में विश्वास करते दया धर्म के ध्वज को लहराता हो वह जैन है। साध्वी श्री प्रमिला जी ने कहा जैसे-जैसे हम व्रत नियम की श्रेणी में आगे बढते जाते हैं। वैसे-वैसे हमारे जीवन से पाप घटता जाता है। धर्म बढ़ता जाता है और एक दिन हम पाप से शून्य होकर सिद्ध आत्मा बन जाते हैं।आपने 9 के पहाड़े से उदाहरण दिया। पहले नो पाप से शुरू होता है। जैसे-जैसे पहाडा आगे बढ़ता हैं आगे धर्म रूपी संख्या बढ़ती जाती है तो पीछे पाप की संख्या घटती जाती है। जैन धर्म में क्वांटिटी नहीं क्वालिटी का जोर है। यही वजह है कि आज पूरे विश्व में हर देश में महावीर के अनुयाई मिल जाएंगे। दिन में 12 व्रत 14 नियम की वाचनी चल रही है । आज की प्रभावना राजकुमार मांगीलाल मुथा परिवार की ओर से वितरित की गई।