श्री हरि से मांगने की आवश्यकता नहीं , हमे क्या चाहिए वह भगवान को ज्ञात हे- आचार्य जैमिन जी

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श्री हरि से मांगने की आवश्यकता नहीं , हमे क्या चाहिए वह भगवान को ज्ञात हे- आचार्य जैमिन जी

          ,श्री हरि से मांगने की आवश्यकता नहीं ,

 हमे क्या चाहिए वह भगवान को ज्ञात हे- आचार्य जैमिन जी 

मनोज उपाध्याय,

राणापुर - मध्य प्रदेश में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के अंतर्गत आचार्य जी ने उपदेश देते हुए कहा की हमे भगवान से कुछ भी मांगने की आवश्यकता नहीं हमे क्या चाहिए वह सब भगवान को माता हे एवं हमारे कर्म के अनुसार तथा पुण्य के अनुसार हमारे भाग्य में जो कुछ भी ही वह सब भगवान हमे देंगे इसी लिए प्रभु की भक्ति निस्वार्थ भाव से करिए । भगवद गीता में तीन प्रकार की भक्ति ना निरूपण है 

१. सतोगुण युक्त भक्त

2.   रजोगुण युक्त भक्ति 

३. तमोगुण युक्त भक्ति 


इन तीनो भक्ति में सतोगुण भक्ति ही श्रेष्ठ है । सतोगुण युक्त भक्ति का अर्थ ही कामना रहित भक्ति । जब हम भगवान की भक्ति करते हैं जिसमें किसीभी प्रकार को कामना नहीं होती हैं तो उसे सतोगुणी भक्ति कहा जाता ही है । रजोगुण भक्ति का अर्थ है किसी प्रकार के फल की आशा रख कर आराधना करना । तमोगुणी भक्ति अर्थ है किसी और के प्रति बुरा भाव रख कर उसका अनिष्ट करने के भाव से भाटी करना । इन तीनो प्रकार की भक्ति में सतोगुणी भक्ति को भगवान ने उत्तम कहा है, रजोगुण युक्त भक्ति को माध्यम कहा है एवं तामसिक भक्ति को अधम माना गया है इस लिए हमेशा निष्काम भाव से निरंतर आराधना करते रहिए श्री हरि आपको जरूर मिलेंगे ।



 



 

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