*अंचल में निभाई वर्षो पुरानी परंपरा बाबा डूंगरी में अनोखे तरीके से जाना मौसम ओर भविष्य का हाल*
*सभ्यताओं ,संस्क्रति ओर आस्था से ही है हमारा देश विश्वगुरु*
,,,मनोज पुरोहित,,
पेटलावद। हमारा देश कर्मप्रधान ओर धर्मप्रधान का मिलाजुला संगम है । आज के आधुनिक साइंस ओर टेक्नोलॉजी के युग मे भविष्य और मौसम की गतिविधियों का पता लगाने के लिए क़ई प्रकार के संसाधन उपलब्ध है ।
*भारत भूमि परम्परा , मान्यताओं और आस्था की अनूठी धरा*
लेकिन इन संशाधनो के बीच आदिवासी अंचल में वर्षो पुरानी परम्पराए ओर मान्यताएं आज भी जीवित है । जो हमारे जीवन का मूल आधार है । जब पुरातन काल मे आधुनिक संशाधन नही थे तब भी हमारे बड़े बुजुर्ग मौसम और भविष्य का आंकलन करने के लिये क़ई प्रकार के जतन करते थे , ओर वे परम्परागत तरीके आज भी जीवित है जो नई पीढ़ी को भारत देश की भव्यता , परंपरा और सभ्यता और संस्क्रति के दर्शन करवाते है ।ऐसी ही एक परम्परा आज भी अंचल में निभाई जाती है । जी हाँ हम बात कर रहे है , प्रतिवर्ष दिपावली पर आयोजित होने वाली प्रसिद्व बाबा डूंगरी क्षेत्र में पाड़ा लुढ़काने की परंपरा का जिसमे अंचल की संस्कर्ति,मान्यताओं और परम्परागत तरीको का दर्शन होता है।
*पारम्परिक तरीके से निभाई परम्परा*
झाबुआ मुख्याल से कुछ किमी (राणापुर) के ग्राम चूही के वागडूंगरा मैं पहाड़ से नर भैंस (पाड़ा) लुढ़का कर भविष्यवाणी की जाती है हर साल यहां बारिश वह फसल को लेकर भविष्यवाणी की जाती है ।इस साल भी यह परम्परा दीपावली पर रविवार को सुबह 11:00 बजे सम्पन्न हुई ।
*दूरदराज से शामिल होने आते है ग्रामीण*
उक्त आयोजन को देखने वर्षों से ग्रामीण पाढे को पहाड़ से नीचे आने की गति को लेकर बारिश व फसल बीमारियों के प्रकोप का अनुमान लगाते हैं इसे देखने सैकड़ों की संख्या में गाँव गाँव से ग्रामीण आते है।
*भविष्यवाणी ओर बारिश के अनुकूल होने का लगाते अंदाजा*
ग्रामीण जन उक्त परम्परागत भविष्यवाणी पर पूरा विश्वास रखते हैं जो चौदस के दिन बुजुर्ग लोग पाडे को ले कर डूंगर पहाड़ी पर चले जाते हैं वहां दिवाली के दोपहर तक विधि पूर्वक बाबा देव की पूजा पाठ होती है
भजन कीर्तन( गायन) के दौर भी चलता है दिवाली की सुबह से ग्रामीण के आने के क्रम शुरू हो जाता है | अंतिम विधि विधान कर पाडे के चारों पैर बांध दिए जाते हैं उसके बलि देकर ऊपर से लड़का दिया जाता है पाडे का बिना कहीं अटके लुढ़कते हुआ सीधे पहाड़ से नीचे बने गड्ढे तक पहुंच जाता हैतो बारिश में फसल अच्छी होने का अंदाजा ब लगाया जाता है, मान्यता है कि अगर धड़ बीच में कहीं अटक का तो बारिश भी बीच में दगा देगी सीधे गड्ढे तक आने का मतलब यह है कि बारिश जोरदार होगी |
*विश्व गुरु है हमारा देश*
खेर इस परंपरा से कुछ लोग इत्तेफाक ओर अलग सोच रख सकते है, लेकिन वाकई में हमारा देश इन परम्पराओ ओर मान्यताओं के खातिर ही विश्व के अन्य देशों से अलग है और विश्व गुरु है । हमे इस धरा पर गर्व है।