फास्ट फूड व नशे का बढ़ता चलन शारीरिक बीमारी और मानसिक विकृति पैदा कर रहा है .....साध्वीश्री

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फास्ट फूड व नशे का बढ़ता चलन शारीरिक बीमारी और मानसिक विकृति पैदा कर रहा है .....साध्वीश्री

 *फास्ट फूड व नशे का बढ़ता चलन शारीरिक बीमारी और मानसिक विकृति पैदा कर रहा है .....साध्वीश्री*

(मनोज पुरौहित

पेटलावदभारतीय संस्कृति ऋषि प्रधान और कृषि प्रधान संस्कृति रही है। आहार -विहार और खानपान की शुद्धि के अभाव में चेतना विकृत बन रही है।


वर्तमान युग में फास्ट फूड और नशे का बढ़ता चलन विभिन्न प्रकार की शारीरिक बीमारी और मानसिक विकृति पैदा कर रहा है। 


नशा अपराधी मनोवृति की जड़ है। ज्ञानशाला वह नर्सरी है जहां बचपन रूपी पौधों को सिंचन प्रदान कर विकास की दिशा प्रदान की जाती है। ज्ञानशाला बच्चो के संस्कारों की निर्माण शाला है। संस्कृति संरक्षण व संवर्धन का महत्वपूर्ण कार्य करते हुए आचार्य से तुलसी ने समाज को ज्ञानशाला रूपी महत्वपूर्ण अवदान प्रदान किया। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने इसे निरंतर संरक्षण प्रदान किया और वर्तमान आचार्यश्री महाश्रमणजी के पावन मार्गदर्शन  मे यह निरंतर गतिमान है।


उक्त आशय के उदगार श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के 11वे अनुशास्ता  युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की विदुषी  सुशिष्या साध्वीश्री उर्मिलाकुमारीजी ने ज्ञानशाला दिवस के आयोजन पर तेरापंथ भवन में उपस्थित बच्चों और श्रावक श्रविकाओं के समक्ष व्यक्त किया।



आपने कहा कि आजकल अभिभावक बच्चों को अच्छे स्कूल-कॉलेज में भेजने की जितनी चिंता करते हैं, दूरस्थ क्षेत्रों में पढ़ने भेजते हैं।

उतनी चिंता उनके संस्कारों के सुरक्षा के लिए नहीं करते है। आपने महामात्य चाणक्य के शब्दों को उद्धरत करते हुए कहा  कहा कि जहां बरसात नहीं  होती वहां फसले खराब होती है, और जहां संस्कार नहीं दिए जाते,वहां नस्ले खराब होती है।


वर्तमान युग में जिस प्रकार से संस्कारों का क्षरण हो रहा है उसे देखते हुए बाल पीढ़ी और देश के भविष्य के लिए चिंतन करना चाहिए। अपने शाकाहार के महत्व को समझाते हुए कहा कि  विकृत अन्न  चिंतन व व्यवहार को बदल देता है। मांसाहार मनुष्य के भीतर एक ओर बीमारियों को पैदा करता है, दूसरा मनोवृत्ति को क्रूर व तामसिक बनाता है।

इस अवसर पर साध्वीश्री मृदुलयशाजी ने कहा कि मां बच्चों के जीवन की सबसे बड़ी निर्माता है। बचपन से छोटे बच्चों में सदाचार का विकास, रात्रि भोजन त्याग, जमीकंद त्याग, नियमित संत दर्शन और नियमित ज्ञानशाला जाने के धार्मिक संस्कारों का निर्माण करना चाहिए।

 

आपने आगामी 1 सितंबर से प्रारंभ हो रहे पर्युषण महापर्व के संदर्भ में कहा कि यह आत्मा की पवित्रता का पर्व है। हमें स्वाध्याय, जप, तपस्या आदि धर्म आराधनाओं के माध्यम से इस पर्व को सफल बनाना है।


ज्ञानशाला दिवस के इस अवसर पर बच्चों ने विभिन्न कंठस्थ ज्ञान गीत आदि विधाओं में सुंदर प्रस्तुति दी देते हुए ज्ञानशाला के महत्व को समझाया तथा बच्चों ने सुंदर संवाद की भी प्रस्तुति दी।


कार्यक्रम का प्रारंभ साध्वी ग्रंथ द्वारा नमस्कार महामंत्र के सघन से हुआ। कार्यक्रम का कुशल संचालन मध्यप्रदेश की आंचलिक सहसंयोजक व स्थानीय व्यवस्थापिका पुष्पा पालरेचा ने किया। इस अवसर पर। ज्ञानशाला परिवार व गत वर्ष के प्रायोजक हरकचंद केसरीमल भंडारी परिवार के द्वारा बच्चों को पुरस्कृत भी किया गया। बच्चों ने विभिन्न प्रकार की विधाओं में प्रस्तुत दी। छोटे बच्चों ने गोचरी का ज्ञान प्रदान करने वाले एक सुंदर कार्यक्रम गोचरी चर्या की प्रस्तुति दी।


ज्ञानशाला को रेखा पालरेचा, रेखा पटवा, संगीता पटवा, हेमलता जैन, हिमांशी जैन, भारती मूणत आदि प्रशिक्षिकाओ की महत्वपूर्ण सेवाएं निरंतर प्राप्त हो रही है।


गौरतलब है कि वर्ष 2024 के ज्ञानशाला प्रायोजक श्री फूलचंद शांतिलाल कांसवा व आगामी 2025 के प्रायोजक श्रीमती फूलकुंवर शांतिलाल गादिया है।

 



 

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