*में शिक्षक नहीं मशीन हु*
*क्या इस तरह से बन पाएगा बच्चो का भविष्य*
*राजेश डामर की कलम से*
कहा जाता हैं कि बच्चे देश का भविष्य होते है लेकिन सही दिशा में
उन्हें शिक्षा मिले तब यह वाक्य सार्थक होता है आज के समय यदि शैक्षणिक गतिविधियों की बात करे तो शिक्षक को कोल्हू का बेल बना दिया गया हे शिक्षकों का वास्तविक महत्व व कर्तव्य सिर्फ बच्चो को शिक्षा देना था लेकिन अतिरिक्त कार्यों के चलते शिक्षक को सिस्टम ने मशीन बना दिया हैं
आज के समय शिक्षकों के पास स्कूली सत्र प्रारंभ होने के साथ ही काम का बोझ बढ़ जाता हैं जैसे मैपिंग,करना अन्य शाला के बच्चो को हटवा कर अपनी संस्था में जोड़ना नए बच्चों की समग्र आईडी,आधार,खाता संख्या लेना SLC देना स्कॉलर लिखना नाम जोड़ना काटना आदि कामों में शिक्षको को रोज अपनी दुकान दारी खोल शैक्षणिक गतिविधियों के अतिरिक्त करना पड़ता हे अभिभावकों से संपर्क कर दस्तावेजों को पूरा करवाना पड़ता हे जैसे तैसे इन कामों से निपटते ही प्रोफाइल ,अपर आईडी, स्कॉलरशिप ,ओर तो ओर अब जाति प्रमाणपत्र के लिए शिक्षकों को अभिभावकों के घर जा जा कर दस्तावेज एकत्रित करना पड़ते हे वही जाति प्रमाण पत्र ,प्रोफाइल,अपर आईडी हेतु शिक्षकों को पूरा पूरा दिन हो जाता हे जिसमें बच्चे की समग्र आईडी, जाति प्रमाणपत्र ,आधार,जन्म प्रमाण पत्र में एक समान जन्म दिनांक हो यदि एक समान नहीं होती तो शिक्षकों को अभिभावकों के समान ये जिम्मेदारी पूरी करनी पड़ती हैं,वही बच्चो को पढ़ाना भी हे और ये जवाबदारियों को भी पूरा करना हे यदि समय पर कार्य नहीं होता है तो वरिष्ठ अधिकारियों की बातों को भी सुनना पड़ता है कुछ समय बाद फिर छात्रवृत्ति के कार्यों को करना खाते नंबर मोबाइल नंबर आदि व्यवस्थाएं शिक्षक बच्चो की पढ़ाई को छोड़ कर मजबूर वस करता हे
ये कहानी यही खत्म नहीं होती कई शिक्षकों के पास तो BLO के दायित्व भी हे,जो उन्हें अपने शैक्षणिक समय के साथ ही जवाबदारी से पूरे करने होते हे ,,
अगर शासन चाहे तो BLO के पद हेतु शिक्षित बेरोजगारों को नियुक्त कर सकता ताकि वह भी रोजगार से जुड़ सके और शिक्षकों को बच्चो को पढ़ाने व शिक्षा का स्तर सुधारने का अवसर मिल सके वर्तमान समय में जहां शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा हे उसे दुरुस्त करने के बजाय शिक्षकों पर जबरन अतिरिक्त कार्यों का बोझ बढ़ाया जा रहा है
तमाम ऐसी जानकारी जो शिक्षा विभाग के पास मौजूद रहती हे उसे नए नए तरीके से दोबारा से मांगा जाता है जिससे व्यवस्थाएं चरमरा जाती है
जब सारी जानकारियां ऑनलाइन करदी जाती है तो फिर वहीं जानकारियों को दोबारा से मांग कर क्यों शिक्षकों को परेशान कर शैक्षणिक कार्यों से दूर कर बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जाता है
फिर आ जाता हे चुनाव उसमें भी शिक्षकों का भरपूर उपयोग लिया जाता हे
ऐसे कई अतिरिक्त कार्यों के बोझ तले बच्चो का भविष्य धक्का मार कर आगे बढ़ाया जाता हे यह कैसी विडंबना हे
*क्या ऐसे सुधरेगा शिक्षा का स्तर ?*