मनुष्य को अपनी सारी समस्याएं भगवान के भरोसे छोड भक्ति करना चाहिए।- पं.धनराज जी*

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मनुष्य को अपनी सारी समस्याएं भगवान के भरोसे छोड भक्ति करना चाहिए।- पं.धनराज जी*

 



 

 *मित्रता में स्वार्थ नहीं देखा जाता है। केवल मित्र को देखा जाता है- पं. धनराज जी* 

 *मनुष्य को अपनी सारी समस्याएं भगवान के भरोसे छोड भक्ति करना चाहिए।- पं.धनराज जी* 

 *सप्तदिवसीय श्रीमद् भागवत की पूर्णाहुति पर झूमे भक्त और महाप्रसादी का आनंद लिया।* 

 *यजमान परिवार ने किया अभिन्नन्दन स्वागत*

(मनोज पुरौहित)

 *पेटलावद,,* भागवत के द्वारा भगवान को जाना जाता है। सप्तदिवसीय ज्ञान गंगा यज्ञ में सम्मिलित हो कर भगवान के करीब पहुंचा जाता है। राजा परिक्षीत को सुकदेव जी जैसे महाज्ञानी ने श्रीमद् भागवत सुनाई और अंत में जब तक्षक नाग ने उन्हें कांटा तो उनकी मृत्यु नहीं हुई उन्हें मोक्ष मिल गया।श्रीमद् भागवत के सुनने से मृत्यु का भय दूर हो जाता है। भागवत के शब्द शब्द में कृष्ण समाये हुए है। उक्त बात विद्वान पं. भागवताचार्य श्री धनराज जी ने सप्त दिवस की कथा के विश्राम अवसर पर कहे।


यजमान परिवार मनोज पुरोहित, गोपाल पुरोहित, महेश पुरोहित के द्वारा पोथी की पूजन और कथा पौथी को अपने सिर पर रख कर विदाई दी। विदाई की इस बेला में सप्तदिवसीय आनंद से शरोबार पुरोहित परिवार की आंखे नम हो गई।


 *गोवर्धन पूजा और छप्पन भोग का नैवेद्य* 

 मानस बापू ने कथा प्रसंग में बताया कि भगवान कृष्ण ने गोवर्धन की पूजा प्रारंभ करवाई और अपनी एक अंगूली पर गोवर्धन पर्वत को उठाया। उन्होनें गोवर्धन पर्वत की कथा के माध्यम से बताया कि आज के मनुष्य को ज्यादा चिंता नहीं करना चाहिए क्योंकी भगवान ने ही गोवर्धन पर्वत को उठाने के भाती आपकी सभी समस्याओं को उठा रखा है। यदि आप प्रभु के भरोसे कार्य करेगें तो कहीं कोई परेशानी नहीं आयेगी।

गोवर्धन पर्वत की कथा के साथ छप्पन भोग का नैवेद्य भी लगाया गया। जिसकी प्रसादी सभी भक्तों में वितरीत की गई।  


              *कृष्ण-रूक्मणी विवाह* 

भगवान कृष्ण ने रूक्मणी की इच्छा अनुसार उनसे विवाह किया। इस विवाह प्रसंग को सजीव चित्रण करते हुए दो बालिकाओं को कृष्ण रूक्मणी बनाया गया और उनका विवाह प्रसंग का चित्रण किया गया। इस अवसर पर भक्तों ने मामेरा भी किया और धर्म लाभ लिया। यजमान पुरोहित परिवार के द्वारा भगवान कृष्ण और रूक्मणी की पूजा अर्चना की गई तथा आनंद के साथ विवाहोत्सव मनाया गया।

 *कृष्ण सुदामा की मित्रता* 


पं. धनराज जी ने बताया कि भगवान कृष्ण ने मित्रता की तो ऐसी की के अपने मित्र को तीन लोक का स्वामी बना दिया। और उनका मित्र सुदामा ब्राम्हण भी ऐसा मिला की जिसे मित्रता के अलावा कुछ नहीं चाहिए। भगवान ने मित्रता की भी मिसाल पेश की है और जगत को बताया है कि मित्रता में कोई स्वार्थ नहीं होता है। इस प्रसंग को भी जीवंत रूप दिया गया और भक्तों को आनंद दिया गया।


 *गुरूदेव का सम्मान किया* 

सप्त दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा का व्यासपीठ से सैकडों भक्तों का रसास्वादन कराने वाले परम पूज्य गुरूजी पं. धनराज जी  का नगर के विभिन्न संगठनों, जनप्रतिनिधियों, समाजसेवियों, पत्रकारों और राजनितिक संगठनों ने सम्मान किया। इसमें मुख्य रूप से भारतीय पत्रकार संघ के द्वारा गुरूदेव को साल श्रीफल, अभिनंदन पत्र भेंट कर सम्मान किया गया। इसके साथ ही अन्य संगठनों के द्वारा भी सम्मान किया गया।

श्रीमद् भागवत कथा के विश्राम पर यजमान परिवार के द्वारा महाआरती का लाभ लिया गया और सभी भक्तों के लिए महाप्रसादी भोजन का आयोजन रखा गया। जिसका लाभ सभी भक्तों ने लिया।  अंत में आभार प्रदर्शन पुरोहित परिवार द्वारा किया गया।

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