*सोमवती अमावस्या पर आदिवासी समाजजन ने नवाई जातर परम्परा*
*आदिवासी सनातनी हिन्दू है और हिन्दू रहेगा"राजेश मेड़ा*
(मनोज पुरौहित).
पेटलावद।आज सोमवती अमावस्या के पावन पर्व पर अपने समाज के सनातन धर्म सर्वोपरि पूर्वजों की शान आदिवासी समाज में नवाई (जातर) के रूप में मनाया गया हैं। उक्त आयोजन में गांव के भक्त जन पधारकर गीत प्रस्तुत कर के माताजी का आस्था भुलाते है बड़वा गोद में बैठकर के हमारे देवी_देवताओ के नाम के साथ वाचन किया जाता है आजकल देख रहे हैं समाज में कई प्रकार की बीमारी चल रही है उसके लिए मांडला निकाला जाता है जो की गांव से खप्पर भर के दुःख दूसरे गांव के काकड़ तक दिया जाता है यही परम्परा जीवित रखने के लिए हमे हमारे गांव के कोटवाल तड़वी और अन्य वरिष्ठ बुजुर्ग दादा जी के साथ मिलकर कार्य करना चाहिए
नवाई जातर परंपरा पीढी दर पीढी रीति रिवाज संवैधानिक अधिकार अपने हक़ का (आरक्षण) ले रहे हैं और तुम दर-दर मजदूरी करने ठोकरें खाते हैं अपनी रूढ़िवादी परंपराओं, संस्कृति,हक़,अधिकारों के लिए। इसाइयों को भगावो,संस्कृति बचाओ। ये लड़ाई इसलिए जरूरी है क्योंकि आदिवासी समाज के आरक्षण का मूल आधार (हिंदू) रूढ़िवादी परंपराएं और संस्कृति हैं, जिसको ईसाई_मिशनरियों द्वारा मिटाया जा रहा हैं। जब ये संस्कृति ही नहीं रहेगी तो आरक्षण भी नहीं रहेगा। ये बहुत गंभीर विषय है। सभी भाईयों को एक जुट होकर अपनी ताक़त दिखानी पड़ेगी।। अपने_अपने गांव की रक्षा,सुरक्षा करो अपने ही समाज की संस्कृति बचाओ।।
सिंदूर से तिलक,सिंदूर से पत्थरों को भगवा बनाना,अगरबत्ती जलाकर धूप करना। अग्निकुंड में नए साल के अनाज को पूजना इसको हो असली आदिवासी कहते है। धर्मपूर्वी_ मतलब पूर्वजों का दिया हुआ धर्म है और जो इस तस्वीर के माध्यम से समझ सकते हो। हां आदिवासी हिंदू है और रहेगा कुछ बेहरूपियों के कहने से आदिवासी अपना स्टेटस नही बदल सकते है उसमे गांव के कोटवाल पांगला मेड़ा तड़वी काना मैंडा, सरपंच मानसिंह डिंडोर, पंच परमेश्वर अक्कू मेड़ा, हुरसिंह मेड़ा, राहुल कटारा, मुकेश मेड़ा, सुकला कटारा, गुड्डू मेड़ा अन्य वरिष्ठ गांव के समाज सेवी कार्यकर्ता उपस्थित हुए थे