शिव का उपासक ज्ञानी है,शिव की भक्ति भवसागर पार लगाती है - पं. प्रफुल्ल शुक्ला*

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शिव का उपासक ज्ञानी है,शिव की भक्ति भवसागर पार लगाती है - पं. प्रफुल्ल शुक्ला*

 *शिव का उपासक ज्ञानी है,शिव की भक्ति भवसागर पार लगाती है - पं. प्रफुल्ल शुक्ला

 *कथा के पांचवे दिन भगवान शिव के स्वरूप का वर्णन करते हुए पूजा का महत्व बताया*  

(मनोज पुरोहित)

 *पेटलावद।* उपासक को निष्काम होकर मोक्ष की प्राप्ति के लिए भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।भक्तिभाव से विधिपूर्वक शिव की पूजा कर जलधारा अर्पित करना चाहिए। मृत्युंजय मंत्र के 5 लाख जाप पूर्ण होने पर भगवान शिव के दर्शन प्राप्त होते है। लक्ष्मी अर्थात धन की कामना करने वाले मनुष्य को कमल के फूल ,बेलपत्र, शतपत्र और शंखपुष्प से भगवान शिव की अर्चना करनी चाहिए। अलग अलग फल की प्राप्ती के लिए अलग अलग फूल व पूजन विधि शिवपुराण में बताई गई है। उक्त बात शिव पुराण कथा के पांचवे दिन व्यास पीठ से आचार्य पं. प्रफुल्ल शुक्ला ने कहीं। निलकंठेश्वर महादेव मंदिर पर शिवपुराण कथा का वाचन चल रहा है। जिसका लाभ सैकडों भक्त प्रतिदिन ले रहे है। कथा 15 दिन तक चलेगी।


 *काशी के निवासी है शिव।* 

पं. शुक्ला ने बताया कि सदाशिव को ही सब मनुष्य परम पुरूष ,ईश्वर,शिव शंभु और महेश्वर कहकर पुकारते है। उनके मस्तक पर गंगा, भाल में चंद्रमा और मुख पर तीन नेत्र शोभा पाते है। उनके पांच मुख है। तथा दस भुजाओं के स्वामी और त्रिशुलधारी है।भगवान शिव के स्वरूप का वर्णन करते हुए। उनके प्रमुख धाम काशी का वर्णन भी किया गया।

 *भगवान शिव निर्गुण निराकार है।* 



कथा प्रसंग में बताया गया कि शिवजी रूद्ररूप में सबका संहार करते है।वे शिव स्वरूप सबके साक्षी है। वे माया से भिन्न और निर्गुण है। अपनी सारी शंकाओ और चिंताओं को त्यागकर भगवान शंकर का ध्यान करें। जो मनुष्य शरीर,मन और वाणी के द्वारा भगवान शिव की उपासना करता है उसे ज्ञानी  कहा जाता है।जो मनुष्य शिवजी की भक्ति करते है वह संसार सागर से भवपार लग जाते है। जो लोग पाप रूपी दावानल से पीडित है उन्हे शिव नाम रूपी अमृत का पान करना चाहिए।

कथा का वाचन प्रतिदिन सुबह 11 बजे से 5 बजे तक किया जा रहा है। कथा के विश्राम पर महाआरती का आयोजन होता है। जिसमें सभी भक्त सम्मिलित हो कर भगवान की आरती करते है और प्रसादी का लाभ लेते है। मंदिर के पुजारी मनोहरदास वैरागी ने बताया कि कथा के लिए भक्तों में अपार श्रद्वा भाव है और भक्तगण प्रतिवर्ष कथा का अमृतरसपान करते है।

 



 

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