वसुदेव कुटुंबकम की भावना हमारे देश और संस्कृति की पहचान....सुश्री वैष्णवी भट्ट*

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वसुदेव कुटुंबकम की भावना हमारे देश और संस्कृति की पहचान....सुश्री वैष्णवी भट्ट*

 



 

 *वसुदेव कुटुंबकम की भावना हमारे देश और संस्कृति की पहचान....सुश्री वैष्णवी भट्ट*

*बुद्ध  पूर्णीमा पर सामाजिक समरसता  हेतु हुआ एक दिवसीय प्रवचन का आयोजन*

             *वरीष्टजन का हुआ सम्मान*

(मनोज पुरोहित)

 *पेटलावद।*  ऊंच-नीच का भेद न माने वहीं श्रेष्ठ ज्ञानी‘‘* जैसे भाव के साथ प्रकृति समानता सिखाती है और प्रकृति ही भगवान का स्वरूप है। यदि प्रकृति भेदभाव नहीं करती है तो हम मनुष्य आपस में भेदभाव कैसे कर सकते है। वर्ण व्यवस्था थी किंतु जातीवाद अंग्रेजों के द्वारा फुट करो और राज करो की नीति के तहत थोपा  गया है। चारो वर्णो के लोग भगवान की ही संतान है। तो सभी आपस में भाई- भाई हुए। जाती के आधार पर नहीं अपितु कर्म के आधार पर वर्ण व्यवस्था कार्य करती है। जिसको विकृत कर दिया गया है। 


उक्त बात बुद्व पूर्णीमा के अवसर पर विदुषी कथा प्रवक्ता सुश्री वैष्णवी भट्ट ने संत रविदास मंदिर प्रांगण में सामाजिक समरसता पर प्रवचन के दौरान कहीं। श्री शत्रुहंता सूर्यमुखी हनुमानगढ धाम समिति के द्वारा सामाजिक समरसता को बढावा देने के लिए आयोजित प्रवचन में हजारों लोगों ने हिस्सा लेकर धर्म लाभ प्राप्त किया। इस मौके पर सर्वप्रथम संत रविदास जी के चित्र पर माल्यार्पण ,पूजन व दीपक प्रज्वलीत किया गया। इसके पश्चात प्रमुख कार्यकर्ता और समिति के सदस्यों के द्वारा कथा प्रवक्ता सुश्री भट्ट का स्वागत व सम्मान करते हुए पौथी पूजन किया गया।

        *वरिष्ठजन का हुआ सम्मान* 


 वहीं सामाजिक समरसता के आयोजन में क्षेत्र की वरिष्ठ महिला श्रीमती केसरबाई डुंगा जी चौहान और विशेष सहयोगी जगदीश जाटव का भी सम्मान किया गया। इस मौके पर समिति के सदस्य मनोज जानी,  सुरभीत भंडारी, धन्नालाल हामड, कमलेश भानपुरिया, रामचंद्र राठौर, शांतिलाल हामड, संजय लोढा, जितेंद्र सेन, गोपाल राठौड, जितेश विश्वकर्मा, कैलाश मिस्त्री मोहित मोरे आदि उपस्थित रहे। 

            *वसुधैव  कुटुंबकम की भावना* 

इस मौके पर सुश्री वैष्णवी भट्ट ने कहा कि भारत में वसुधैव कुटुम्बकम का भाव निहित है। भारत के लोग पूरे विश्व को अपना परिवार मानते है और पूरे विश्व के लिए प्रार्थना करते है। भारत ने कोरोना काल जैसे समय में अन्य देशों की मदद कर यह सिद्व किया है। वहीं भगवान बुद्व पर बोलते हुए कहा कि सिद्वार्थ से बुद्व बनने में हमें जो त्याग, वैराग्य और समानता का भाव देखने को मिलता है वह अदभुत है।

संत शिरोमणी श्री रविदास जी को दर्शन देने के लिए ठाकुर जी स्वयं संत वेश में आते थे। हमें भक्त बनना है हमें वैष्णवता धारण करना है। तो हमारे मन में सभी के प्रति समान भाव उत्पन्न होता है ।आज के इस अवसर पर श्री राधा रमण जी का प्राकट्य उत्सव भी मना और बुद्व के जीवन पर चर्चा और संत रविदास जी के जीवन पर चर्चा हुई। प्रवचन के पश्चात संत शिरोमणी रविदास जी की आरती का आयोजन रखा गया और अंत में महाप्रसादी का वितरण हुआ। संचालन वीरेंद्र भट्ट ने किया। आभार जगदीश जाटव ने माना।

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