*कानून अब अंधा नहीं, खुल गई न्याय की मूर्ति की आंखों से पट्टी हाथ में तलवार की जगह सविधान की किताब ओर समानता का प्रत्तिक तराजू*
*सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने लगवाई सुप्रीम कोर्ट में न्याय का प्रत्तिक लेडिस ऑफ जस्टिस की नई मूर्ति*
*ब्रिटिश काल के कानूनों के बाद अब विचारों में भी बदलाव का सन्देश*
(मनोज पुरौहित)
पेटलावद।। अक्सर फ़िल्मी डायलॉग में कानुन को अंधा बताया जाता है ,वही न्याय कि प्रतीक मूर्ति की आंखों पर पट्टी बंधी हुई है यह कहा जाता है । इस किवंदती के पीछे मुख्य कारण यह है कि देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट में ब्रिटीश काल के जमाने से न्याय की प्रतीक मूर्ति *लेडिस ऑफ जस्टिस* कि मूर्ति
लगी हुई है । जिसकी आंखों में पट्टी होकर एक हाथ मे तलवार और दूसरे हाथ मे तराजू है ।
*बिर्टिश काल के कानूनों के साथ अब विचारों में भी किया जा रहा बदलाव, दे रहे नया सन्देश*
लेकिन आजादी के बाद से अब वर्तमान समय मे पूरे देश मे अग्रजो के समय के कानूनो में न सिर्फ बड़ा बदलाव किया गया है बल्कि न्याय की मूर्ती जो कि न्याय का प्रतीक है कि स्वरूप में भी बदलाव करते हुए न्याय का नया सन्देश देने का भी प्रयास किया गया है ।
*इस वर्ष लागू हूए है नए कानून*
उल्लेखनिय है कि जुलाई 2024 से देश मे अंग्रेजों के समय से चले आरहे कानूनों आईपीसी ,सीआरपीसी ओर कोर्ट की प्रक्रिया और साक्ष्य कानून में बदलाव करते हुए नए नियम और कानुन भारतीय नागरिक सुरक्षा सहिता ओर भारतिय न्याय सहिता लागू किये गए है ।
*सुप्रीम कोर्ट में स्थापित हुई नई मूर्ति*
दरअसल सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने सर्वोच्च न्यायालय में न्याय की मूर्ति *लेडिस ऑफ जस्टिस*
कि नई मूर्ति बनवाने का ऑर्डर देते हुए सुप्रीम कोर्ट की लाइब्रेरी में नई मूर्ति लगाई है।
*हट गई आंखो से पट्टी ओर तलवार*
उक्त नवीन मूर्ति की आंखों से पट्टी हटा दी गयी है और हाथ मे तलवार की जगह सविधान की किताब दी गयी है,तो दूसरे हाथ मे समानता न्याय के प्रतीक तराजू को यथावत रखा गया है ।
*CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने इन बदलावों का उद्देश्य बताया कि कानून अंधा नहीं है*
पुरानी मूर्ति में दिखाया गया अंधा कानून और सजा का प्रतीक था। आज के समय के हिसाब से सही नहीं था, । इस बदलाव का मुख्य उद्देश्य यह संदेश देना है कि कानुन सब देख रहा है, कोर्ट किसी भी नतीजे पर पहुचने से पहले दोनो पक्षों के तर्क और तथ्यों को देखते ओर सुनते हैं।