*अरिहंत एक शब्द से संशय को समाप्त कर देते हैं साध्वी .....श्री सुव्रता जी*
*ओलिजी पर्व का प्रथम दिवस*
(मनोज पुरौहित)
पेटलावद।विशिष्ट आराधना साधना में बदल जाती है ।साधना सिद्धि बन जाती है। ऋषभदेव से लेकर महावीर स्वामी तक हर तीर्थंकरों ने तप से आराधना शुरू की और अपने कर्मों को क्षय कर अरिहंत व सिद्ध बने। नो दिवसीय औली जी पर्व विशिष्ट आराधना का अवसर है। अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु ज्ञान दर्शन चरित्र तप की आराधना की जाती है। प्रथम दिवस अरिहंत परमात्मा को समर्पित है ।अरिहंत को जानने से चेतना जागृत हो जाती है। जीवन से मिथ्या तत्व समाप्त हो
जाता है। राग द्वेष के मल्लो को पछाड़कर अरिहंत बनी आत्मा हमारे भव भव कि आदि व्याधि को हर लेती है। विश्व का कोई भी जीव जिसका शत्रु नहीं है अर्थात अपने सारे अरि( शत्रुओं) को जीतने वाले अरिहंत होते हैं। विकारी भाव को शत्रु मानकर उन्हें जीतने वाले अरिहंत अपनी आत्मा को ही मित्र व शत्रु मानकर आत्मा विजेता बनकर तीर्थंकर बन तीर्थ की स्थापना करते हैं। अरिहंत ऐसे ज्ञान के समान होते हैं जो अपने भीतर व बाहर संसार में उसका प्रकाश फैला ते हैं। जो अपने एक शब्द से संशय को समाप्त कर देते हैं। पूजा के श्रेष्ठ पात्र अरिहंत परमात्मा ही होते हैं। उक्त बात साध्वी श्री सुव्रता जी ने शाश्वत औली जी पर्व के प्रथम दिन अरिहंत की आराधना करते हुए धर्म सभा में कहे ।
साध्वी श्री नेेह प्रभा जी ने कहा इच्छाओं का निरोध करना ही तप है। तप में अन्न का अभाव रहता है पर छोड़ने वाले के मन में धर्म का तप का प्रभाव रहता है ।स्व इच्छा से सब छोड़कर प्रसन्नता महसूस होती है। आज से समग्र जैन समाज की सामूहिक औली जी कि तपस्या प्रारंभ हुई ।प्रथम दिवस के लाभार्थी राजेंद्र कुमार मथुरा लाल मेहता परिवार रहा उनकी ओर से प्रभावना भी वितरित की गई। औली जी के संयोजक अशोक मेहता ने बताया कि आज सफेद वर्ण के 9 बिना नमक के 37 व नमक वाले 52 कुल 98 आयबींल हुए। तपस्वियों में सभी संप्रदाय के श्रावक श्राविका शामिल हुए।