इंसानियत की मिसाल इमाम हुसैन की याद में थांदला में निकला ताजीये का जुलूस

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इंसानियत की मिसाल इमाम हुसैन की याद में थांदला में निकला ताजीये का जुलूस

 *इंसानियत की मिसाल इमाम हुसैन की याद में थांदला में निकला ताजीये का जुलूस*

थांदला -  पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन की याद में मुहर्रम मनाए गए । 7 जुलाई से इस्लामिक साल का शुरू वो गया था, पहला महीना मोहर्रम का होता है । मोहर्रम महीने की 10 तारीख़ को आशूरा का दिन कहते है । आशूरा के दिन हजरत इमाम हुसैन को कर्बला में शहीद किया गया था । इस्लाम धर्म के लोग इसे मोहर्रम त्योहार के रूप में नहीं बल्कि हजरत इमाम हुसैन की याद के रूप में मनाते हैं, मोहर्रम की 1 तारीख से 10 तारीख तक रोजाना ईशा की नमाज़ के बाद गौसिया जामा मस्जिद में


मौलाना इस्माईल बरकाती साहब व कारी मुश्ताक बबीबी साहब द्वारा शहादातनाममा सुनाया गया, हर साल की तरह इस साल भी आशूरा के दिन सुबह 10 बजे जामा मस्जिद में दुआ ए आशूरा पढ़ाई गई। ताजिए का जुलूस दोपहर 2 बजे जामा मस्जिद से शुरू हुआ और गांधी चौक में सभी ताजिए एकत्रित होने के बाद जुलूस पुरानी पोस्ट ऑफिस चौराहे पर पहुंचा, चौराहे पर हुसैनी अखाड़ा खेला गया। हुसैनी अखाड़े के उस्ताद शाकिर शेख व शोएब खान (भुरू) द्वारा अपने शिष्यों के साथ विभिन्न विभिन्न प्रकार के हैरात अंगेज करतब दिखाए गए । हुसैनी अखाड़ा खेलने के बाद ताजिए का जुलूस बोहरा मोहल्ला होते हुए अस्पताल चौराहे पर पहुंचा जहां से आजाद चौक, गांधी चौक होते हुए करबला पहुंचा। रास्ते भर में ताजिए पर मन्नतधारीयो ने अपनी मन्नतें पूरी की। 

ताजिये के जुलूस में मुस्लिम पंच सदर हश्मतुल्लाह पठान, फरजमान पठान,ताजिया बनाने ज़ाकिर शेख (राजापुरा) मोहम्मद अकबर खान,ज़ाकिर शेख,शहजाद कुरेशी,मसीद, आशिक शेख,साबिर रंगरेज, रिज़वान खान,रियाज़ खान ,, हुसैनी कमेटी के सदर शाहिद निजामी आदि मुस्लिम समाजजन मौजूद रहे। प्रशासन की ओर से सुरक्षा व्यवस्था को लेकर पुख्ता इंतजाम किए गए थे । 

मुस्लिम पंच सदर हश्मतुल्लाह पठान ने प्रशासन को धन्यवाद देते हुए कहा कि ताजिए के जुलूस को लेकर प्रशासन की तरफ अच्छा बंदोबस्त किया था। पुलिस विभाग,नगर परिषद की ओर से बेहतर व्यवस्थाएं की गई थी जिससे जुलूस में किसी भी प्रकार से कोई दिक्कत नहीं रही । 

*यजीद ने इमाम हुसैन को कत्ल क्यों किया?*

अरब के इतिहास में दर्ज ये एक ऐसी जंग है, इमाम हुसैन से लेकर 6 महीने के मासूम अली अजगर को भी तीर मारकर शहीद कर दिया गया था । इंसानियत और सत्य की लड़ाई में हजरत इमाम हुसैन ने अपने 72 साथियों के साथ कर्बला के मैदान में तीन रोज तक बिना पानी ओर खाने के भूखे रखकर जंग लड़ी थी। यहां तक की छोटे-छोटे बच्चों पर भी पानी बंद कर दिया गया था । उस समय के शाम (अरब का एक देश) के बादशाह यजीद ने मनावता पर बर्बरीयत की सारी हदें पार कर दी थीं ।

 



 

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