*सुदामा-श्री कृष्ण की मित्रता आदर्श प्रेम स्मरण कराती। - आचार्य डॉ. देवेन्द्र शास्त्री*
*श्रीमद्भागवत गीता महोत्सव का हो रहा भव्य आयोजन*
(मनोज पुरौहित)
पेटलावद।भागवत कथा आज के जीवन में हमें मानवता, सदाचार, सामाजिक सद्भाव, मर्यादा, कर्तव्य परायता, नैतिकता, ईमानदारी का संदेश देती है। यह दिव्य सन्देश आदिवासी अंचल झाबुआ जिले की पेटलावद तहसील के ग्राम रायपुरिया में आयोजित सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के सातवें दिन बुधवार को हरिहरआश्रम के पीठाधीश्वर आचार्य डॉ. देवेन्द्र शास्त्री ने प्रदान किया। उन्हाेंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता सामाजिक समरसता का अच्छा उदाहरण है।
कथा में श्रीकृष्ण-सुदामा की मित्रता का वर्णन करते हुए पंडित श्री शास्त्री कहा कि देखी सुदामा की दीन दशा करुणा करके करुणानिधि रोए। पानी परात सो हाथ छुओ नहीं नैनन के जल सो पग धोए। भगवान श्री कृष्ण द्वारिकापुरी के स्वामी है, तो सुदामा प्रजा के प्रतिनिधि हैं। कृष्ण भगवान हैं तो सुदामा एक भक्त हैं, फिर भी वे सांदीपनि की पाठशाला में गुरु भाई और बाल सखा हैं। यह मित्रता कृष्ण जीवन भर निभाते हैं। अपने मित्र के स्वागत के लिए स्वयं सिंहासन छोड़कर नंगें पैर दौडे़ चले आते हैंं। अपने मित्र को गले लगा कर अपने आसन पर बिठाकर सम्मान देते हैं। जीवन यात्रा में मित्रता का आधार धन सम्पत्ति , वैभव नही होता है । सुदामा-श्री कृष्ण की मित्रता आदर्श प्रेम स्मरण कराती
जब भी हम आदर्श मित्रता की बात करते हैं ताे सुदामा और परमात्मा श्री कृष्ण का प्रेम स्मरण हो आता है, उन्होंने कहा कि एक ब्राह्मण, भगवान श्री कृष्ण के परम मित्र थे।
वे बड़े ज्ञानी, विषयों से विरक्त, शांतचित्त तथा जितेन्द्रिय थे। वे गृहस्थ होकर भी किसी प्रकार का संग्रह परिग्रह न करके प्रारब्ध के अनुसार जो भी मिल जाता उसी में संतुष्ट रहते थे। उनकी पत्नी का नाम सुशीला था। उन्होंने सुदामा जी से प्रार्थना की वह अपने बचपन के मित्र श्री कृष्ण के पास जाएं।
श्री कृष्ण अंतर्यामी तो थे ही, उन्होंने देखा उनका प्रेमी भक्त सुदामा उनसे मिलने आ रहा है। श्री कृष्ण ने जैसे ही द्वारपालों के मुख से सुना सुदामा आया है, वे बाहर आ गए। सुदामा जी का चरण प्रक्षालन किया, पूजन किया। उन्होंने सुदामा के आने का कारण एवं उनके ह्रदय की बात जान ली। इस प्रकार भक्ति करते हुए सुदामा भगवान श्री कृष्ण के धाम को प्राप्त हो जाते हैं।
*समाज में व्याप्त कुरीतियों का निवारण संस्कारो को ग्रहण करने से होगा*
आचार्य श्री शास्त्री ने कहा कि मनुष्य जीवन में कई संस्कार निर्धारित किए गए हैं जिसमें से विवाह संस्कार महत्वपूर्ण है। यदि सदियों से यह संस्कार नहीं चला आया होता तो इस सृष्टि में मानवता एवं मानव विलुप्त हो जाते इसके संदर्भ में वर्तमान स्थितियों को जोड़ते हुए उन्होंने बताया कि नई पीढ़ियां पश्चिमी सभ्यता का अनुकरण करते हुए अपने संस्कारों को भूलती जा रही है। उनकी यही भूल मानवता के लिए ह्रास उत्पन्न कर रहे हैं विसंगतियां उत्पन्न हो रही है और समाज में कुरीतियों का बोलबाला पनपने लगा है। यदि मनुष्य निर्धारित संस्कारों के अनुरूप चलता रहे तो समाज में विसंगतियां व्याप्त नहीं होंगी।
*परीक्षित मोक्ष*
भागवताचार्य ने कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि मोक्ष की कामना प्रत्येक मनुष्य करता है, लेकिन सभी को सही राह नहीं मिलती है। भागवत महापुराण कथा एक एसा मार्ग है जो प्रत्येक को मोक्ष की ओर ले जाती है। राजा परीक्षित को मिले श्राप से हुई मृत्यु के बाद भी कथा सुनने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसलिए कलयुग में मोक्ष की कामना करते है तो श्रीमद् भागवत महापुराण कथा से श्रेष्ठ मार्ग कोई नहीं है। उन्होंने कहा कि राजा परीक्षित को सात दिनों में सर्प के डसने से मृत्यु होने का श्राप मिला और उन्होंने इन सात दिनों में ही श्रीमद् भागवत कथा श्रवण कर मोक्ष को प्राप्त कर भगवान के बैकुंठ धाम को चले गए। इस कलयुग में भी मनुष्य श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण कर अपना कल्याण भी कर सकते हैं। इस कलयुग मे भी मनुष्य भगवान के नाम स्मरण मात्र से भगवत् शरणागति की प्राप्त कर अपने जीवन को धन्य बना सकते है।इसके बाद भागवत महापुराण की आरती भक्तों ने भक्तिभाव से ओत-प्रोत होकर की। इस अवसर पर विक्रम मैडा जिला पंचायत सदस्य विक्रम मेड़ा, आशा पाटीदार सरदार सेना प्रान्तीय अध्यक्ष, मोहनलाल पाटीदार राष्ट्रीय मानव आयोग, सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मीनारायण पाटीदार रामनगर, परिवेश पटेल सहित हजारो की संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे।
कथा के समापन पर व्यास पीठ को सुशोभित कर रहे पुज्य आचार्य श्री देवेंद्र शास्त्री का अभिनंदन साफा, शाल ओढ़ाकर आयोजक परिवार के बसंतीलाल सोलंकी, हरिओम पाटीदार विक्रम आयशर, हरिराम पाटीदार, रामेश्वर पाटीदार, गोविंद पाटीदार, मुकेश पाटीदार, अमृत पटेल ने किया। समापन पर आभार हरिराम जी मारसाब ने माना।